Dulhan chudi : भारतीय संस्कृति में चूड़ियों का विशेष स्थान है। यह सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि स्त्रियों की भावनाओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़ी एक गहरी सांस्कृतिक धरोहर है। खासतौर पर विवाह और त्योहारों के अवसर पर चूड़ियों का विशेष महत्व होता है। प्रस्तुत चित्र में जो चूड़ियाँ दिखाई गई हैं, वे पारंपरिक और आधुनिक शिल्पकारी का अद्भुत मेल हैं।
इन चूड़ियों में हरे, लाल और सफेद रंगों का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है, जो पारंपरिक शुभ रंग माने जाते हैं। हरे रंग की चूड़ियाँ समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होती हैं, वहीं लाल रंग प्रेम और शक्ति का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और पवित्रता को दर्शाता है। साथ ही, इन चूड़ियों को कुंदन, मोती, जरकिन और रंगीन नगों से सजाया गया है, जिससे इनकी सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है।
कुछ चूड़ियाँ कड़े (कड़ा) रूप में हैं जिनमें राजस्थानी और गुजराती शैलियों की झलक मिलती है। वहीं कुछ में छोटे-छोटे लटकन और गोटा-पट्टी जैसे काम भी दिखाई देते हैं, जो इन्हें और भी खास बनाते हैं। ये चूड़ियाँ विवाहिता महिलाओं के लिए विशेष रूप से बनती हैं, जिन्हें वे शादी, करवा चौथ, तीज या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में पहनती हैं।
Dulhan chudi : इनमें से कुछ चूड़ियाँ ‘चूड़ा’ के रूप में हैं, जो नवविवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाती हैं। लाल-सफेद रंग का संयोजन विशेष रूप से पंजाबी और मारवाड़ी परंपराओं से जुड़ा है। वहीं हरे रंग की काँच की चूड़ियाँ महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश की पारंपरिक पोशाक का हिस्सा हैं।
इन चूड़ियों की सुंदरता सिर्फ इनके रंग और डिज़ाइन में नहीं, बल्कि उनमें छिपे भावों, परंपराओं और स्त्री जीवन की अनकही कहानियों में भी है। यह सिर्फ एक गहना नहीं, बल्कि स्त्री की पहचान और आत्मगौरव का प्रतीक है।