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1908 की ऐतिहासिक photo viral,अंग्रेज़ों की कैद में भारतीय क्रांतिकारी की झलक

1908 की ऐतिहासिक photo viral,अंग्रेज़ों की कैद में भारतीय क्रांतिकारी की झलक 1908 ईस्वी की एक दुर्लभ तस्वीर सोशल मीडिया पर photo viral हो रही है, जिसमें अंग्रेज़ों की गिरफ्त में एक भारतीय ...

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1908 की ऐतिहासिक photo viral,अंग्रेज़ों की कैद में भारतीय क्रांतिकारी की झलक

1908 ईस्वी की एक दुर्लभ तस्वीर सोशल मीडिया पर photo viral हो रही है, जिसमें अंग्रेज़ों की गिरफ्त में एक भारतीय क्रांतिकारी दिखाई दे रहा है। यह तस्वीर सिर्फ एक कैदी की नहीं, बल्कि उस दौर के पूरे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी कहती है।

बंगाल विभाजन (1905) के बाद भारतीय युवाओं में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश तेज़ हो चुका था। इसी आक्रोश ने 1908 में अलीपुर बम कांड जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रम को जन्म दिया। अरविंद घोष, बारीन्द्र कुमार घोष, खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जैसे क्रांतिकारी अंग्रेज़ों को सीधी चुनौती दे रहे थे। इसी दौर में बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर जेलों में डाला गया।

अंग्रेज़ों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया बेहद कठोर होती थी। पुलिस और गुप्तचर किसी भी संदिग्ध क्रांतिकारी पर नज़र रखते और जैसे ही थोड़ी भी गतिविधि का सबूत मिलता, आधी रात को छापा मारकर पकड़ लिया जाता। बिना वारंट के गिरफ्तारी आम थी। कई बार घरों की तलाशी लेकर बम बनाने का सामान, पर्चे और गुप्त पत्र जब्त किए जाते।

गिरफ्तार क्रांतिकारियों को जेल में अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था। अधिकांश को अंडमान की ‘कालापानी’ जेल भेजा जाता, जहाँ तंग कोठरियाँ, जंजीरों में बंधे दिन और भूख-प्यास से त्रस्त रातें उनका इंतजार करती थीं। तेल कोल्हू चलाना, नारियल कूटना और भारी पत्थर ढोना जैसी कठिन सज़ाएँ दी जातीं। उनका उद्देश्य शरीर तोड़ना ही नहीं, बल्कि आत्मा को कुचलना भी होता था।

अगर किसी क्रांतिकारी पर अंग्रेज़ अधिकारियों पर हमला या बम फेंकने का आरोप साबित हो जाता, तो उसे फाँसी की सज़ा दी जाती। 1908 में ही खुदीराम बोस को महज़ 18 वर्ष की उम्र में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। जबकि प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को गोली मार ली। जिन्हें फाँसी नहीं दी जाती, उन्हें आजीवन कारावास देकर कालापानी भेजा जाता।

जेल में उनका व्यवहार और भी क्रूर था। अंग्रेज़ अधिकारी उन्हें अन्य कैदियों से अलग रखते ताकि उनकी क्रांतिकारी विचारधारा न फैले। मारपीट, भूखा रखना और मानसिक यातना देना आम बात थी।

1908 का अलीपुर बम कांड उस दौर की सबसे बड़ी घटना बना, जिसमें दर्जनों क्रांतिकारी पकड़े गए। इस मुकदमे ने पूरे देश का ध्यान खींचा और अंग्रेज़ों के दमनकारी रवैये को उजागर किया।

आज photo viral हो रही यह तस्वीर हमें उस समय के त्याग और बलिदान की याद दिलाती है। अंग्रेज़ों की कठोर यातनाओं के बावजूद भारतीय क्रांतिकारी अडिग रहे और उनके बलिदान ने पूरे राष्ट्र में स्वतंत्रता की ज्वाला भड़का दी। यही साहस आगे चलकर आज़ादी की नींव बना।