Indian history :1952 की दिल्ली की झलक: तंग गलियां, तांगे और सादगी भरा जनजीवन – एक तस्वीर ने दिलाया बीते दौर का अहसास
Indian history : दिल्ली की एक पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, जो साल 1952 के जनजीवन को दर्शाती है। यह तस्वीर लोगों को उस दौर में ले जाती है जब देश आज़ादी के कुछ ही साल बाद अपने नए स्वरूप की तलाश में था। सादगी, अपनापन और सीमित संसाधनों के बीच खुशहाल जिंदगी जीने वाले लोग उस समय की असल पहचान थे।
Indian history : 1952 की दिल्ली में जीवन का केंद्र साधारणता थी। आज जहां हर सड़क पर कार और बाइक दिखाई देती है, वहीं उस दौर में तांगे, रिक्शे और साइकिलें ही मुख्य आवा-गमन के साधन हुआ करते थे। गलियों में बच्चे नंगे पांव खेलते नज़र आते और लोग साइकिल से ही दूर-दराज़ का सफर तय कर लेते। दिल्ली की तंग गलियों में तांगे की घंटियों की आवाज़ आम बात थी।
बाजारों की रौनक भी कुछ अलग थी। चांदनी चौक और दरियागंज जैसे इलाकों की पहचान अपने पारंपरिक बाज़ारों से थी, जहां दुकानदार खादी के कुर्ते-पायजामे या साड़ी में ग्राहकों को बुलाते। अधिकतर लोग अपनी रोज़मर्रा की जरूरतें स्थानीय दुकानों से पूरी करते और बड़े-बड़े मॉल या सुपरमार्केट जैसी सुविधाओं का कोई नामोनिशान नहीं था।
घरेलू जीवन भी सादगी से भरा था। ज्यादातर घरों में मिट्टी के चूल्हे या कोयले से खाना पकता था। रेडियो ही मनोरंजन का मुख्य साधन था, जिस पर लोग समाचार और गाने सुनते। टेलीफोन गिने-चुने घरों तक ही सीमित था और पत्राचार ही संवाद का प्रमुख जरिया माना जाता था।
उस समय दिल्ली की आबादी भी आज की तुलना में बहुत कम थी। भीड़भाड़ के बजाय चौड़ी सड़कों पर शांति और खुलापन झलकता था। लोग आपस में मिल-बैठकर गपशप करते और मोहल्लों में सामूहिकता का भाव देखने को मिलता।
1952 की दिल्ली की यह तस्वीर लोगों को याद दिलाती है कि कैसे सादगी और सीमित साधनों के बावजूद जीवन सहज और खुशहाल था। आज जहां तकनीक और आधुनिक साधनों ने जीवन को तेज़ रफ्तार बना दिया है, वहीं यह झलक हमें बताती है कि बीते जमाने की दिल्ली में सादगी ही सबसे बड़ी पहचान थी।