हिमालय पर्वत नहीं, भारत की जीवनरेखा है
‘मोगली पलटन’ का लद्दाख आंदोलन को समर्थन
ऋषिकेश फ़ाउण्डेशन की बाल टोली मोगली पलटन ने सोनम वांगचुक के नेतृत्व में लद्दाख में जारी आंदोलन को समर्थन दिया है । बाल टोली का मानना है कि लद्दाख में इन दिनों चल रहा जनांदोलन केवल क्षेत्रीय हित का विषय नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत के भविष्य से जुड़ा प्रश्न है। पर्यावरणविद् एवं शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक विगत कुछ दिनों से पाँच सप्ताह के जनअनशन पर हैं। उनकी माँग है कि लद्दाख को भारतीय संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए तथा उसे राज्य का दर्जा प्रदान किया जाए। ज्ञात हो कि अप्रैल 2025 में ऋषिकेश फाउंडेशन के एक सेवादार ने लद्दाख पहुँचकर श्री सोनम वांगचुक से भेंट की थी और ‘मोगली पलटन’ की भावी गतिविधियों पर गहन चर्चा भी हुई थी।
हिमालय का पर्यावरणीय एवं सांस्कृतिक महत्व
1. हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप का जीवन-रेखा है।
2. गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ हिमालय से ही उद्गमित होती हैं और करोड़ों लोगों को जल व जीवन देती हैं।
3. यह पर्वत-शृंखला पूरे दक्षिण एशिया के जलवायु संतुलन और पर्यावरणीय स्थिरता की धुरी है।
4. हिमालय की जनजातीय परंपराएँ, सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक जीवनशैली भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अमूल्य आयाम हैं।
इस प्रकार, हिमालय का संरक्षण केवल सीमावर्ती क्षेत्र की आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित का दायित्व है।
छठवीं अनुसूची का महत्व
1. भारतीय संविधान की छठवीं अनुसूची अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों को विशेष स्वशासन, संसाधनों पर नियंत्रण तथा सांस्कृतिक संरक्षण का अधिकार देती है।
2. इससे लद्दाख की जनता अपने स्थानीय संसाधनों पर अधिकारपूर्वक नियंत्रण रख सकेगी।
3. पारंपरिक संस्कृति और सामाजिक ढाँचा बाहरी दबाव एवं अंधाधुंध दोहन से सुरक्षित रहेंगे।
4. लद्दाख को छठवीं अनुसूची के अंतर्गत लाना वहाँ के सतत विकास और स्वाभाविक सांस्कृतिक संरक्षण की पूर्व शर्त है।
हिमालयी उत्खनन से हमारा नुक़सान
यदि हिमालय क्षेत्र में अंधाधुंध खनन, अतिक्रमण और ग्लेशियर क्षेत्रों में अवैज्ञानिक निर्माण जारी रहा, तो—
1. ग्लेशियरों के पिघलने की गति तीव्र होगी, जिससे गंगा-यमुना सहित समस्त उत्तर भारतीय नदियों का अस्तित्व संकट में आ जाएगा।
2. भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी आपदाएँ अधिकाधिक होंगी, जिनका प्रभाव सम्पूर्ण भारतवर्ष पर पड़ेगा।
3. जलवायु असंतुलन और पारिस्थितिकीय क्षरण से खाद्य एवं जल सुरक्षा खतरे में आ जाएगी।
5. जनजातीय संस्कृति, जो हिमालय को सुरक्षित रखने की सबसे बड़ी गारंटी है, विलुप्त हो सकती है।
ऋषिकेश फ़ाउंडेशन की बाल टोली ‘मोगली पलटन’ ने केंद्र सरकार से इस जनांदोलन से जुड़ी माँगों पर गंभीरता से विचार किए जाने की अपील करते हुए कहा है कि सतत विकास का वास्तविक स्वरूप तभी साकार होगा जब स्थानीय लोग, उनकी परंपराएँ और उनके संरक्षण-ज्ञान को निर्णय प्रक्रिया का केंद्र बनाया जाए।