जांच पूरी…फिर भी न्याय अधूरा! प्रशासनिक ढिलाई ने पीड़ित को दर-दर भटकने पर किया मजबूर
कितना अजीब है कि शिकायत दर्ज हो, जांच रिपोर्ट तैयार हो जाए, सबूत भी मौजूद हों—फिर भी न्याय के दरवाज़े बंद नज़र आते हैं। पोड़ी निवासी रामचरण बंसल का मामला ऐसा ही है, जो आज प्रशासन की लापरवाही की गवाही देता दिख रहा है।
रामचरण बंसल ने चुरहट थाने के तत्कालीन प्रभारी अत्तर सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि उनसे पैसों की मांग की गई और दर्ज रिपोर्ट व न्यायालयीन बयान तक तोड़-मरोड़कर पेश किए गए। मामले की जांच पुलिस अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओपी) चुरहट ने की और स्पष्ट रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में यह तक दर्ज है कि प्रभारी अत्तर सिंह को अपना पक्ष रखने और दस्तावेज प्रस्तुत करने का मौका दिया गया। लेकिन 18 जुलाई 2025 तक न तो उन्होंने जवाब दिया और न ही कोई दस्तावेज।
इसके बावजूद—आज तक ठोस कार्रवाई नहीं!
रामचरण बंसल का कहना है कि उन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) से जो दस्तावेज हासिल किए, उनमें सीसीटीवी फुटेज और अन्य पुख्ता सबूत मौजूद हैं। मगर इसके बावजूद कार्रवाई का नाम तक नहीं लिया गया। सवाल ये है कि अगर सबूत और रिपोर्ट दोनों मौजूद हैं तो आखिर किसके दबाव में न्याय रोका जा रहा है?
पीड़ित परिवार महीनों से आईजी रीवा और पुलिस अधीक्षक सीधी के कार्यालय के चक्कर काट रहा है। मगर उन्हें केवल आश्वासन मिलता है, ठोस नतीजा नहीं। यह स्थिति न सिर्फ पीड़ित के लिए दर्दनाक है, बल्कि पुलिस की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करती है।
आज जनता पूछ रही है—क्या ऐसे ही मामलों से पुलिस विभाग पर भरोसा कायम रहेगा? या फिर न्याय केवल कागज़ों में ही दबकर रह जाएगा?
रामचरण बंसल और उनका परिवार अब भी उम्मीद लगाए बैठा है कि प्रशासन जागेगा और दोषी थाना प्रभारी पर कार्रवाई होगी। लेकिन सवाल यह है कि न्याय के नाम पर आखिर उन्हें और कितने दिन भटकना पड़ेगा?