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“75 साल बाद भी अंधेरे में सीधी का मवई – बिजली विभाग का कमाल, बिल है लेकिन बिजली नहीं”

“ट्रांसफार्मर और खंभे खड़े, पर तार गायब; ग्रामीण कटिया से रोशनी जलाने को मजबूर, बच्चों की पढ़ाई अब भी मोमबत्ती के सहारे” सीधी। आजादी को 75 साल से अधिक हो गए, लेकिन सीधी ...

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ट्रांसफार्मर और खंभे खड़े, पर तार गायब; ग्रामीण कटिया से रोशनी जलाने को मजबूर, बच्चों की पढ़ाई अब भी मोमबत्ती के सहारे”

सीधी।
आजादी को 75 साल से अधिक हो गए, लेकिन सीधी जिले की चुरहट तहसील का ग्राम मवई आज भी अंधेरे में जी रहा है। खासकर दलित बस्ती के घरों में बिजली के नाम पर सिर्फ बिल पहुंच रहा है, रोशनी नहीं।गांव में ट्रांसफार्मर लगा है, खंभे भी खड़े हैं, लेकिन तार महीनों पहले ही विद्युत विभाग ने निकाल लिए। नतीजा यह है कि ग्रामीणों को मजबूरी में ट्रांसफार्मर से कटिया डालकर बांस-बल्ली के सहारे तार खींचकर बिजली जलानी पड़ रही है। सुरक्षा और मानकों की धज्जियां उड़ रही हैं, मगर सवाल है कि आखिर लोग कब तक अंधेरे में बैठे रहें?

ग्रामीणों का कहना है कि “हर महीने बिल जरूर आता है, लेकिन बिजली की सुविधा नहीं। जब कटिया डालकर रोशनी कर लेते हैं तो विभाग के कर्मचारी आकर तार काट देते हैं और सामान जब्त कर लेते हैं। उसके बाद फिर पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है।”

इस लापरवाही से न सिर्फ हादसे की आशंका बनी रहती है बल्कि बच्चों की पढ़ाई और महिलाओं के कामकाज पर भी गहरा असर पड़ रहा है। दलित बस्ती के लोग बताते हैं कि उनके बच्चे मोमबत्ती और मिट्टी के तेल के दीये में पढ़ने को मजबूर हैं।

गांव वालों का सीधा सवाल है –
“जब ट्रांसफार्मर लगा है, खंभे खड़े हैं, बिल बन रहा है, तो तार कहां गायब हो गए? क्या हमारा हक सिर्फ अंधेरे और बकाया तक ही सीमित है?”

वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला सिर्फ बिजली का नहीं बल्कि विकास की असमानता का प्रतीक है। सरकारी वादे टीवी और कागजों पर तो रोशनी बिखेरते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में मवई गांव अब भी अंधेरे से बाहर नहीं निकल पाया है।