Girnarji जैन समाज का गिरनार पर्वत बेहद ही खास माना जाता है क्योंकि यह है एक ऐतिहासिक स्मारक ही नहीं बल्कि जैन समाज के लिए एक धार्मिक स्थान का महत्व रखता है यहां आने के बाद जैन धर्म के लोगो की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है।
स्थान और पहुँच:
Girnarji पर्वत भारत के गुजरात राज्य के जुनागढ़ ज़िले में स्थित है। यह पर्वत श्रृंखला काठियावाड़ प्रायद्वीप में अरावली पर्वतमाला की एक शाखा मानी जाती है। गिरनार पर्वत समुद्र तल से लगभग 3,666 फीट (1,117 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है और इसे दक्षिण भारत की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं में एक माना जाता है।
कैसे पहुँचे:
हवाई मार्ग:
Girnarji जाने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट राजकोट (160 किमी) या अहमदाबाद (320 किमी) है।
रेल मार्ग:
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जुनागढ़ जंक्शन है, जहाँ से गिरनार पर्वत तक टैक्सी या बस द्वारा पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग:
गुजरात राज्य के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से सीधी बस/प्राइवेट गाड़ी की सुविधा उपलब्ध है।
धार्मिक महत्त्व:
गिरनार पर्वत जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ से जुड़ा है। मान्यता है कि भगवान नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत पर दीक्षा ली और यहीं मोक्ष प्राप्त किया। यह पर्वत जैन धर्म के अनुयायियों के लिए वैसा ही है जैसे हिन्दुओं के लिए कैलाश या वैष्णो देवी।
प्रमुख जैन स्थल और मंदिर:
नेमिनाथ मंदिर:
Girnarji गिरनार पर्वत की चोटी पर स्थित है, जहां भगवान नेमिनाथ की मुख्य प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल द्वारा कराया गया था।
अम्बिका माता मंदिर:
जैन धर्म में पूजित यक्षिणी अम्बिका देवी का मंदिर, जो पर्वत की यात्रा के दौरान एक प्रमुख पड़ाव है।
मल्लिनाथ मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, धर्मनाथ मंदिर और अन्य तीर्थंकरों के मंदिर भी पर्वत पर स्थित हैं।
चढ़ाई और यात्रा
गिरनार पर्वत पर लगभग 9,999 सीढ़ियाँ हैं जो विभिन्न मंदिरों तक पहुँचने के लिए चढ़नी होती हैं। यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है और श्रृद्धालु इसे “तपस्या” की तरह पूरा करते हैं।
हाल ही में रोपवे (Girnar Ropeway) की शुरुआत हुई है, जो गिरनार की चढ़ाई को सुगम बनाती है और पर्यटकों को कुछ ही मिनटों में शीर्ष तक पहुँचने में मदद करती है।
इतिहास और परिवर्तन (सन 1890 से अब तक):
सन 1890 के पहले और आस-पास:
उस समय गिरनार एक अत्यंत दुर्गम तीर्थ था। यात्रियों को संपूर्ण यात्रा पैदल ही करनी पड़ती थी।
मंदिरों की संरचना प्राचीन शैली में थी, अधिकांश निर्माण पत्थरों से हुआ था और संरक्षण के उपाय सीमित थे।
स्थानीय राजाओं और जैन संघों द्वारा ही इनका संचालन और देखरेख होती थी।
🔹 स्वतंत्रता आंदोलन और मध्यकाल (1890-1980):
इस काल में तीर्थ की यात्रा की कठिनाई के कारण यह केवल कट्टर श्रद्धालुओं तक सीमित था।
जैन समाज द्वारा कुछ मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया, और संगठनों जैसे आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट ने तीर्थ की सेवा में भागीदारी बढ़ाई।
1960 के बाद से सरकारी संरक्षण और पर्यटन विभाग ने तीर्थ स्थलों के विकास पर ध्यान देना शुरू किया।
वर्तमान समय (1980 के बाद):
गिरनार रोपवे परियोजना (2020 में आरंभ): यह भारत का सबसे लंबा रोपवे है, जिससे हजारों लोग अब आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर:
पक्की सड़कें, रात्रि विश्राम गृह, जल-विद्युत की व्यवस्था, और पर्यटन सुविधाओं में भारी सुधार हुआ है।
डिजिटल प्रचार-प्रसार
अब गिरनार का महत्व डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर फैल चुका है।
संरक्षण और रिस्टोरेशन: पुरातत्व विभाग और जैन ट्रस्ट मिलकर मंदिरों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं।
गिरनार की विशेषताएँ संक्षेप में:
बिंदु विवरण
धार्मिक महत्व भगवान नेमिनाथ को समर्पित
सीढ़ियाँ लगभग 9999
प्रमुख मंदिर नेमिनाथ, अम्बिका, पार्श्वनाथ, धर्मनाथ
रोपवे एशिया का सबसे लंबा रोपवे (गिरनार रोपवे)
प्रमुख आयोजन गिरनार यात्रा, माघ पूर्णिमा मेला
सुरक्षा और सुविधाएँ CCTV, मेडिकल कैम्प, जल-शौचालय सुविधाए है।