Holkar emperor : इंदौर, 1894: तीन होलकर राजकुमारों की दुर्लभ तस्वीर वायरल — जानिए कौन थे ये शाही वारिस और क्या रहा इनका योगदान
इंदौर।
Holkar emperor : साल 1894 की एक ऐतिहासिक तस्वीर इन दिनों फिर से चर्चा में है, जिसमें होलकर वंश के तीन राजकुमार अपने मुलाज़िम के साथ नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर ने इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है। मराठा साम्राज्य के इस गौरवशाली वंश की जड़ें 18वीं सदी से जुड़ी हैं, लेकिन 19वीं सदी के अंत में होलकर परिवार में जो तीन शाही वारिस थे, उन्होंने इंदौर के भविष्य को गहराई से प्रभावित किया। आइए जानें कि कौन थे ये तीन राजकुमार और क्या था उनका योगदान।
तुकोजीराव होलकर तृतीय – आधुनिक इंदौर के शिल्पकार
1894 के समय इंदौर राजघराने में सबसे प्रमुख नाम उभर कर सामने आता है महाराज तुकोजीराव होलकर तृतीय का। वे महज एक किशोर वय में गद्दी के उत्तराधिकारी बनाए गए थे। बाद में 1903 में विधिवत रूप से राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अपने शासनकाल में इंदौर को एक आधुनिक शहर में तब्दील करने की दिशा में कई पहल कीं। रेलवे लाइनें, टेलीफोन व्यवस्था, प्रशासनिक सुधार और पश्चिमी वास्तुकला का आरंभ उन्हीं की देन माना जाता है। उन्होंने विक्टोरियन प्रभाव में आकर शहर के कायाकल्प की दिशा तय की।
Holkar emperor : यशवंतराव होलकर द्वितीय – अंतिम महाराजा और भारत समर्थक
दूसरे राजकुमार यशवंतराव होलकर द्वितीय थे, जिनका जन्म 1908 में हुआ और वे बाद में 1926 में इंदौर के अंतिम महाराजा बने। वे अपने पिता तुकोजीराव तृतीय के शासन छोड़ने के बाद सत्ता में आए और स्वतंत्र भारत के गठन तक इंदौर रियासत का प्रतिनिधित्व करते रहे। भारत में विलय के समय उन्होंने शांतिपूर्वक रियासत को भारतीय संघ में मिलाया और नई दिल्ली में भारत सरकार के साथ जुड़े। उनका योगदान राजनीति से लेकर संस्कृति और आर्ट डेको शैली में बना “माणिक बाग पैलेस” तक फैला हुआ है।
Holkar emperor : शिवाजीराव होलकर द्वितीय – उत्तराधिकार की कड़ी
तीसरे राजकुमार शिवाजीराव होलकर द्वितीय थे, जिनका शासन 1886 में समाप्त हो गया था, लेकिन 1894 के इस ऐतिहासिक काल में उनके वंशज और उत्तराधिकारी सक्रिय भूमिका में थे। शिवाजीराव का कार्यकाल अपेक्षाकृत शांत रहा, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार से संतुलित संबंध बनाए रखे और राज्य में स्थिर प्रशासन का मार्ग प्रशस्त किया।
होलकर वंश की चमक आज भी कायम
यह ऐतिहासिक तस्वीर न केवल राजसी भव्यता की याद दिलाती है, बल्कि एक ऐसे युग की झलक भी दिखाती है जब इंदौर शिक्षा, संस्कृति और विकास की दिशा में अग्रसर हो रहा था। होलकर वंश ने इंदौर को वह आधार दिया, जिस पर आज यह शहर मध्य भारत का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।